Saturday, April 28, 2007

अल्यूनाटाइम




यह
अत्याधुनिक किँतु पौराणिक चँद्रमा की घटने बढने की प्रक्रिया से जुडी हुई नई इजाद है. ३ वृत्ताकार वलयोँ से ज्वार - भाटा से पर्चालित समय को नई पध्ध्ति सेसमझने वाला यँत्र है --

--धुरी पर घुमती हमारी पृथ्वी के स्पँदनोँ से, आधुनिक सोचके साथ बिलकुल नई दिशा की ओर ले जाता अद्वितीय व वैज्ञानिक स्मारक है -इसके द्वारा हम समय को एक नये तरीके से समझ पायेँगे क्यूँकि यह चँद्रमा और समुद्र के ज्वार भाटा पर आधारित घडी है

४० मीटर का घेरा लिये ५ मँजिल ऊँचाई लिये,३ पुरानी सीमेन्ट से बनाया गया, पारदर्शक, अंडे के आकार का वृताकार स्मारक है -

इस के वलयोँ से चँद्रमा की किरणोँ के पसार होने से जो समय का ज्ञान होता है उसे अल्यूनाटाइम कहा गया है

हाल मेँ २०१२ तक इसको बनाये जाने की सँभावना है स्थान का चयन सँभवत यू.के. ग्रेट ब्रिटन, ओस्ट्रेलिया या लँदन हर मेँ मेरीडीयनपर इसके बनने की सँभावना है -- देखेँ लिन्क --

सूरज मुखिया


ओ,सूरजमुखी के फूल,
तुमने कितने देखे पतझड?
कितने सावन? कितने वसँत ?कितने चमन खिलाये तुमने?
कितने सीँचे कहो, मधुवन?
धूल उडाती राहोँ मेँ,चले क्या?
पगडँडीयोँ से गुजरे थे क्या तुम?
सुनहरी धूप, खिली है आज,
बीती बातोँ मेँ बीत गई रात,
अब और बदा क्या जीवन मेँ?
क्योँ ना कह लूँ मनकी मैँ बात!
तुम सुनते जाना साथी मेरे,
मैँ " सूरजमुखिया " ,तू दीखला बाट !
घूमते रहते सूरज के सँग सँग
मुर्झा जाते हो अँधकार आने पे,
मैँने खिलाये जो बाग बगीचे,
सौँप चला हूँ आज,तेरे हवाले !
करना रखवाली बगिया की तुम,
मैँ ना रहूँ कल,कहीँ, जो चल दूँ!
--लावण्या

Thursday, April 26, 2007

केन्द्रबिन्दु


प्रशाँत महासागर किनारे पर खडा ऐकाकी वृक्ष जो १७ मील लँबे तेज रफ्तार मार्ग पर पर्यटक आकर्षण का "केंद्रबिंदु" है जिसे देखकर मन न जाने, कई बार, कितने ही तानोँ बानोँ मेँ उलझ गया है !!
मेरी अम्मा श्रीमती सुशीला नरेन्द्र शर्मा द्वारा बनाया हुआ चित्र



" पल पल छिन छिन,
कण कण बिन बिन,

सँजोये जो हर दिन

घुल मिल जाते यूँ,

बिँदु तुहीन जल से

महासागर मे मिल -
-अस्तित्व अलग है,
वारिधि का क्या ?

कण का क्या रज से ?

उस असीमता का पट,

ऊँचे अम्बर फलकसे ?

मुझमेँ निहारीकाएँ,
मैं आकाशगँगा मेँ,
एकाकार हुआ सर्व,

मौन गहन मनन मेँ !"
Ye Ek "Abstract " poem hai -- "Kendra Bindu" VYOM Mandal ka, CENTERAL Point hai .
VIRAT , ka ya BRAHM ka -- ya ATMAN ka bhee --

Every mili second, in the tinest of the atoms particles, that which is "preserved"
often merges into INFINITY ---
In Dew drops, in mighty Oceans,in all forms of WATER,
in every sand particle, stretching into beyond it all,
reflecting from the AAKASH , adorned with multitudes of Galaxies
where I am a STAR in the Milky Way ...when my SILENCE deepens
in my hour of Solitude !

-- लावण्या

लिखावट : कैसी हो ? ( Some unusual & Rare Documents )

~ वे हमेशा अपना लिखा हुआ ईश्वर के नाम के आरँभ के साथ आरँभ करतीँ हैँ
जी हाँ ,देखिये, पन्ने के ठीक बीचोँबीच लिखा है,
"श्रीकृष्ण" लिखावट : कैसी हो ?
मतलब इन्सान जबसे लिखना पढना शुरु करता है, अक्षरोँ से अपने मन की भावनाओँ को आकार देना शुरु करता है, तभी से लिखा हुआ एक एक अक्षर, 'दस्तावेज" की तरह सुरक्षित हो जाता है.
"ब्लोग - लेखन" भी हर इन्सान की सूझ बूझ, विचार शैली को लँबे अँतराल तक, समेटे, भविष्यमेँ कई सँभावनाएँ सँजोये, कुछ कहता हुआ, कुछ अपने लिये, कुछ किसी अन्य के लिये एक सत्य सा रखता हुआ, वैसा ही प्रामाणिक दस्तावेज बन पाये ये लिखनेवाले पर या तो 'सच्ची बातोँ " पर निर्भर होगा जो स्वयँ ही अपना आपा ढूँढेगा, बनायेगा या खो देगा !
यहाँ पर कई अलग तरह की लिखावट प्रस्तुत है ~
~हमारी सोच समझ जीवन के अनुभवोँ पर आधारित होती है, कई बार देख सुनकर वह ज्यादह परिपक्व होती है।
कुछ ऐसा भी लिख गए कि जिन्हेँ एक " माप - दण्ड " माना गया __ जैसे कि, कवि नाट्यकार रस शिरोमणि कालिदास या शेक्सपीयर !!
हिन्दी नाटिका " माधुरी" का प्रथम पृष्ठ देखिये __ आज "विश्वजाल" पर, "जाल घर" पर उपस्थित हो ही गया है ! ये पुस्तक मेरे पास है -- क्लीक करेँ और पढेँ --श्री भार्तेन्दु हरिस्चन्द्रजी की किताब का पहला पन्ना, हिन्दी साहित्य का प्रथम गौरवमय सोपान आज भी अपनी विजय पताका फेहराता, शान से
से खडा है !

हिन्दी नाटिका " माधुरी" का प्रथम पृष्ठ देखिये

और ये मेरे पुज्य पापाजी का देहली से लिखा हुआ पोस्ट कार्ड है -- जब वे आकाशवाणी को खडा करने मेँ सँलग्न थे -- आज भी "रानी बिटिया लावणी " का सम्बोधन पढकर, हल्की सी मुस्कान चेहरे पर छा ही जाती है ! अक्षर अवश्य धुँधले पड गये हैँ, स्याही भी सूख गई है कागज़ भी पुराना हो चला है पर उनकी भाव उमडवाने की क्षमता मेँ कोई कमी नहीँ आई !

और अँत मेँ यह चित्र मुझे भेजा गया था "ई मेल" के जरिये ~

~ कैलास पर्बत पर हिमपात का द्र्श्य कैमरे से लिया गया है !

गौर से देखिये, क्या जैसा आकार नहीँ दीखता ?? है ना विस्मय लिये बात ?

Sunday, April 22, 2007

घुंघरू क्या बोलेँ ?



घुंघरू क्या बोलेँ ?
क्या बोलेँ ? क्या बोलेँ ?
कह दो गोरिया ...
घुंघरु क्या बोले क्या बोले क्या बोले?
लाज लगे, पग रोके,
मुझे देख अकेली,पथ रोके,
पैन्जनीया, मनवा पग रोके पग रोके,
ना शोर मचा, जग जायेगा जग,
बढेगी मोरी उलझन,
ताको वे बोले, ये बोले,
घुँघरु ये बोले!
-- लावण्या

Thursday, April 19, 2007

मासूमोँ का खून बहा कर तुम्हेँ क्या मिला " चो " ?



कहाँ हमारे महान सँत महापुरुष और कहाँ ऐसे भूले भटके नवयुवक ? कितनी बडी खाई है -- सोचने मेँ , समझने मेँ -- जब ऐसे निर्मम युवा की तस्वीर यहाँ दे रही हूँ तब इस पापात्मा को मार्ग दीखलाने के लिये, इन विभूतियोँ को भी यहाँ आदरणीय स्थान देना चाहती हूँ -- शायद उनकी असीम अनुकँपासे इस जीव का उध्धार हो जाये, क्या पता ? :-(




मासूमोँ का खून बहा कर तुम्हेँ क्या मिला " चो " ?????
ये तस्वीरेँ हैँ जो न्युयोर्क के अखबार मेँ छपी हैँ --
दिवँगतोँ की आत्मा को परम कृपालु ईश्वर अपनी ज्योति मेँ समाहित करेँ और शाँति प्रदान करेँ यही नम्र प्रार्थना है मेरी !!!!
-- जीवन इसी का नाम है कहीँ पर शादी की खुशीयाँ, नाचगाना, सँगीत के स्वर गूँजते हैँ तो कहीँ मातम छाया रहता है दबी सिसकीयाँ सूनी आँखोँ स्वजन की आकृति की प्रतीक्षा करतीँ हैँ !
दुखद
समाचार है -- सोच रही हूँ कि, "चो" जैसे नवयुवक के आथ दूसरे युवा सहपाठीयोँ ने , ऐसा क्या किया होगा कि उसे इतना गुस्सा आ गया ?
बार युवा पीढी पर पढाई का बेहिसाब बोझ लाद दीया जाता है, आगामी भविष्व मेँ उन्हेँ अच्छी नौकरी की तलाश, मिलेगी या नहीँ ? पढाई कैसी रहेगी ? सफलता मिलेगी या नहीँ ? उस पर यौवनावस्था मेँ , किस तरह के मित्र मिलते हैँ, उनसे कैसे अनुभव हासिल होते हैँ , परिवार कहाँ तक सह्हयता कर पाता है, जीवन साथी की तलाश के दुर्गम पडाव, ये कई सारे मानसिक दबाव व तनाव रहते हैँ और इन सारे कोणोँ मेँ जहाँ भी रिक्त्तता रहती है, वहीँ से निराशा गहरे पानी की तरह आकँठ आ घेरती है --

Wednesday, April 18, 2007

ऐश्वर्या अगर भाभी बनने जा रहीँ हैँ तब सारे " देवरोँ " के लिये ये खास गुजरात का गीत हिन्दी शब्दोँ मेँ पेश कर रही हूँ







ऐश्वर्या अगर भाभी बनने जा रहीँ हैँ तब सारे " देवरोँ " के लिये ये खास गुजरात का गीत हिन्दी शब्दोँ मेँ पेश कर रही हूँ

" ओ भाभी मोरी महावर रचाई ल्यो"
मेहन्दी बोई थी मालव मेँ उसका रँग गया गुजरात रे,

भाभी मेरी महावर रचाई लो !
कुट पीस के भरी कटोरीयाँ,
ओ भाभी रचालो ना तुम्हारे हाथ रेभाभी, मेहँदी लगा लो !"

Sunday, April 15, 2007

नर्मदे हर ! नर्मेदे हर !--नर्मदा क्षेत्र के तीर्थ स्थान : भाग - ४


नर्मदा क्षेत्र के प्रमुख तीर्थ स्थान : नर्मदा माई की उत्तर दिशा मेँ स्थित यात्रा के स्थलोँ की सूची इस प्रकार है ~~
१) परशुराम - हरी धाम २) भड भूतेश्वर, ३) भरुच,४) शुक्ल तीर्थ,
५) शिमोर,६) बडा कोरल ७) नारेश्वर (जो श्री रँग अवधूत जी का आश्रम स्थल है)  ८) माल्सार ९) झानोर १०) अनसुआ ११) बद्री नारायन
१२) गँगनाथ १३ ) चानोड ,(जो दक्षिण का प्रयाग कहलाता है)
१४ ) कर्नाली १५ ) तिलकवाडा १६) गरुडेश्वर १७) हम्फेश्वर १८) कोटेश्वर १९) माधवगढ या रेवाकुँड २०) विमलेश्वर या अर्धनारेश्वर २१) माहेश्वर २२) मँडेलश्वर २३) बडवाहा २४) ओम्कारेश्वर २५) २४ अवतार
२६) श्री सीतावन २७) ध्याधि कुँड २८ ) सिध्धनाथ २९) भृगु कुत्छ
३०) सोकालीपुर ३१) ब्राह्मणघाट ३२) भेडाघाट३३) धुँधाधार
३४) तिलवाराघाट ३५) गौरीघाट ३६) जल हरी घाट ३७) मँडला घाट
३८) लिँग घाट या सूर्यमुखी नर्मदा ३९) कनैया घाट ४०) भीम कुँडी
४१) कपिल धारा ४२) अमर कँटक धाम ४३) माँ की बगिया
४४) सोनधार या सुवर्ण प्रपात ४५) नर्मदा उद्`गमस्थली।
नर्मदा माई की प्रशस्ति, जगद्`गुरु श्री शँकराचार्य जी ने " नर्मदाअष्टक " की रचना करके भारतीय जन मानस मेँ नर्मदा माई का महत्त्व प्रतिष्ठित किया है। 

नमामि देवी नर्मदे ।नर्मदा अष्टक -


" नर्मदा अष्टक के लिए इमेज परिणाम
श्री नर्मदाष्टकम
सबिंदु सिन्धु सुस्खल तरंग भंग रंजितम
द्विषत्सु पाप जात जात कारि वारि संयुतम
कृतान्त दूत काल भुत भीति हारि वर्मदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे। १

त्वदम्बु लीन दीन मीन दिव्य सम्प्रदायकम
कलौ मलौघ भारहारि सर्वतीर्थ नायकं
सुमस्त्य कच्छ नक्र चक्र चक्रवाक् शर्मदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे। २

महागभीर नीर पुर पापधुत भूतलं
ध्वनत समस्त पातकारि दरितापदाचलम
जगल्ल्ये महाभये मृकुंडूसूनु हर्म्यदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे। ३ 

गतं तदैव में भयं त्वदम्बु वीक्षितम यदा
मृकुंडूसूनु शौनका सुरारी सेवी सर्वदा
पुनर्भवाब्धि जन्मजं भवाब्धि दुःख वर्मदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे। ४

अलक्षलक्ष किन्न रामरासुरादी पूजितं
सुलक्ष नीर तीर धीर पक्षीलक्ष कुजितम
वशिष्ठशिष्ट पिप्पलाद कर्दमादि शर्मदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे।५

सनत्कुमार नाचिकेत कश्यपात्रि षटपदै
धृतम स्वकीय मानषेशु नारदादि षटपदै:
रविन्दु रन्ति देवदेव राजकर्म शर्मदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे। ६

अलक्षलक्ष लक्षपाप लक्ष सार सायुधं
ततस्तु जीवजंतु तंतु भुक्तिमुक्ति दायकं
विरन्ची विष्णु शंकरं स्वकीयधाम वर्मदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे। ७

अहोमृतम श्रुवन श्रुतम महेषकेश जातटे
किरात सूत वाड़वेषु पण्डिते शठे नटे
दुरंत पाप ताप हारि सर्वजंतु शर्मदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे। ८

इदन्तु नर्मदाष्टकम त्रिकलामेव ये सदा
पठन्ति ते निरंतरम न यान्ति दुर्गतिम कदा
सुलभ्य देव दुर्लभं महेशधाम गौरवम
पुनर्भवा नरा न वै त्रिलोकयंती रौरवम 9

त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे
नमामि देवी नर्मदे, नमामि देवी नर्मदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे
*******************************************
अक्सर कहा जाता है कि, "नदी का स्त्रोत और साधु का गोत्र कभी न पूछेँ ! "
परन्तु जब भी धीमे, शाँत जल प्रवाह को दुस्तर पहाड के बीच रास्ता निकाल कर बहते हुए हम जब भी देखते हैँ तब ये सवाल मन मेँ उठता ही है कि, इतना सारा जल कहाँ से आता होगा ? इस
महान नदी का अस्त्तित्व कैसे सँभव हुआ होगा ? जीवनदायी, पोषणकारी निर्मल जलधारा हमेँ मनोमन्थन करवाते हुए, परमात्मा के साक्षात्कार के लिये प्रेरित करती है जो इस शक्ति के मूल स्त्रोत की तरफ एक मौन सँकेत कर देती है।
पँचमहाभूतमेँ से जल तत्व आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी से मानव शरीर सूक्ष्म रुप मेँ ग्रहण करता है उसीसे जल तत्व से हमारा कुदरती सँबध स्थापित  हुआ है।  जल स्नान से हमेँ स्फुर्ति व परम् आनंद प्राप्त होता है। मनुष्य की थकान दूर हो जाती है तथा मन व  शरीर दोनोँ प्रफुल्लित होते हैँ।  जब ऐसा स्वच्छ जल हो जो प्रवाहमान हो, मर्र मर्र स्वर से बहता हो, कल कल स्वर से जाता हुआ बह रहा हो, अपनी जलधारा के संग प्रकृति का मधुर सँगीत लेकर बह रहा हो तथा स्पर्श करने पर शीतल हो तब तो मनुष्य की प्रसन्नता द्वीगुणीत हो जाती है !  ऐसा नदी स्नान करना हमारी स्मृतियोँ मेँ सदा सदा के लिये बस जाता है ! जिसकी बारम्बार स्मृति  उभरती रहती है।  
लेखिका : लावण्या




(पावन नदी नर्मदा) नर्मदे हर ! नर्मदे हर! ": भाग - ३


भारत मेँ एक यह भी रीवाज है कि, पावन नदीयोँ की परिक्रमा की जाये ! मनमेँ प्रार्थना लिये, हाथ जोडे, प्रणाम करते हुए, अगर भक्ति भाव सहित, नदी की परिक्रमा की जाये तब नर्मदा माई आपकी इच्छाओँ को पूरी करेँगी ऐसी लोक मान्यता है। 
" निर्धन को मिले धन,
बांझ को मिले बालक,
अँधे को मिले दर्शन,
नास्तिक को मिले भक्ति, टूटे
सारे बँधन, नर्मदे हर ! नर्मदे हर! "
जिस भूमि पर नर्मदा की पावन धारा बहती है वह तपनिष्ठ भूमि है।  भक्तोँ की मान्यता है कि, यमुना नदी के जल के ७ / सात  दिन समीप रहने के बाद, उसका जल पीते रहने के बाद, पूजा करने के बाद तथा सरस्वती नदी के जल का प्रभाव ३/ तीन दिवस के पश्चात  तथा  गँगाजी के जल में शरीर डूबोकर स्नान करने के पश्चात उक्त पवित्र नदियों का जल,   मनुष्य के इकत्रित किये हुए पापोँ को धो देता है ! किन्तु मैया नर्मदा ऐसी पावन नदी है कि, जिसके बस दर्शन करने मात्र से ही वे,  मनुष्य  के समस्त पापों को धो देतीँ हैँ ! नर्मदा माई के दोनों ही किनारे ये पावनकारी क्षमता रखते हैँ !
जिन ऋषियोँ ने नर्मदा नदी के समीप तपस्या की, जप तप व यज्ञ इत्यादि कीये हैं उनकी सूची अति विशद है।  कुछ  प्रमुख नाम इस प्रकार हैँ ~  जैसे, कि, देवराज इन्द्र, जल के देवता वरुण,  देवों  के धन के अधिपति कुबेर, जय गाथा महाभारत के रचियेता ऋषि वेद व्यास,  ब्रह्माजी के मानस पुत्र सनत कुमार, अत्रि ऋषि, ऋषि कुमार नचिकेता, भृगु महाराज, महर्षि च्यवन, पिप्पलाद, श्रीराम के गुरु ऋषि वशिष्ठ, ऋषि भर्द्वाज ऋषि कश्यप, गौतम, याज्ञवल्क्य,मार्केण्देय, शुकदेव, राजा पुरुरवा, नृपति मान्धाता, हीरण्यरेति, श्रीरँग अवधूत इत्यादी
लेखिका : लावण्या

Saturday, April 14, 2007

नर्मदे हर ! नर्मेदे हर! -- भाग - २


इतिहास साक्षी रहा है नदीयोँ के आसपास के इलाकोँ का कि, किस तरह मानवीय प्राचीन सभ्यताओँ का, ग्राम्य व नगरोँ मेँ परिवर्तित होना, यह  नदी तट पर ही, सँभव हुआ ! जल की सुविधा, भूमि का बाहुल्य, नदीओँ का सामीप्य, मानव जाति की आबादी के बसने मेँ, मानव के सभ्य होकर, ग्रामवासी व नगरवासी के रूप में प्रतिष्ठित होने में सहायक सिध्ध हुए।  नदी की सँपदा से ही एक 'कायमी पडाव' मनुष्य की सभ्यता के सोपान बन सके थे। युफ्रेटीस, टाईग्रीस, नदियों ने सर्व प्रथम 'मेसोपोटेमीया ' सभ्यता की नींव ईसा पूर्व काल ५००० - ३५०० 5000-3500 BCE: में रखी थी।
Middle East 3500BC याँग काई शेक व सीक्याँग नदीयोँ के तटोँ पर चीन की सभ्यता पनपी।
भारत की सिँधु नदी ने सिँधु घाटी की सभ्यता की नीँव रखी थी।
नाइल नदी ने उसी तरह, प्राचीन इजिप्त की सँस्कृति व सभ्यता के सुमन खिलाये थे।  गँगा यमुना व इन नदीयोँ की सहभागी धाराओँ ने, उत्तर भारत को सदीयोँसे सीँचा है अपने जल से जीवित रखा हुआ है।  उत्तराखँड आज भी इन नदियों के नीर से आबाद है ! यह सारे उदाहरण से नदीयोँ को मानव ने " सँस्कृति और सभ्यता की जननी " की उपमा दी। नदियों  के प्राणदायी जल से ही  मनुष्य प्रगति की गाथा के आध्याय लिखे गये हैँ। आगे भी, मानव सभ्यता के इतिहास की गाथाएँ नदियों के योगदान से सम्बंधित एवं संवर्धित होकर लिखीं जाएंगीं। विश्व की नदियाँ माता स्वरूप हैं जो सभ्यता रुपी शिशु को गोद मेँ लिये, दुलारतीं हुईँ, मानव जीवन को संवर्धित सुपोषित करतीं हुईं " माँ " स्वरुप हैँ अतः मानव इन्हें आदर दृष्टि से देखता आया है। दुःख इस बात का है कि मानव अपनी जननी का योगदान अनदेखा कर देता है उसी तरह यदि मानव नदियों के जल का महत्त्व भूल जाता है, प्राणदायी जल को दूषित करने लगता है तब मानव जीवन के लिए यही प्राणदायी जल, अनुपयुक्त बन जाता है। यह अत्यंत गंभीर सत्य से मानव जाति को विमुख न होना ही मानव जाति की सुरक्षा व समपन्नता में श्रीवृद्धि करता रहेगा। नदियों को प्रदुषण मुक्त रखने में ही श्रेय है।  
यहां पर जो गंभीर बिंदुओं पर हम सोच रहे हैं जिन अन्य वैश्विक स्तर की नदीयोँ के बारे मेँ हम कह रहे हैँ, वही माई नर्मदा नदी पर भी लागू होती है। नर्मदा नदी के किनारोँ पर बसे लोगोँ के लिये वे " लोक -माता" हैँ इतना ही नहीँ वे " परा ~ शक्ति, जगदम्बा स्वरुपिणी" हैँ जो कि
" विश्वमाता स्वरुपा" भी हैँ ! इस वर्तमान समय मेँ, कच्छ, समूचा गुजरात नर्मदा की पावन जल धारा का अमृतदायी जल अपनी भूमि की प्यास बुझाने हेतु चाहता है नर्मदा के आशीर्वाद के बिना इन प्राँतोँ का उत्कर्ष और खुशहाली असँभव जान पडते हैँ। 
क्र्मश: --
: लावण्या

Friday, April 13, 2007

नर्मदे हर ! नर्मेदे हर ! -- भाग - १


मैया नर्मदा, मात्र नदी नहीं भारत भूमि की धरा पर बहती भोलेनाथ शिवजी की कृपा धारा है व पवित्रता, उपयोगिता और भारतीय सँस्कारोँ की नदी है। पुराण कालसे नर्मदा का आँचल, तपस्वीयोँ की , योगियोँ की, तपोभूमि रही है।
नर्मदा मैया की पावन स्मृति के संग पवित्र छवि उभरती है एक पहुंचे हुए संत महात्मा की जो हमारे परिवार के आशीर्वाद स्वरूप थे। वे महायोगी थे। श्री मोटाभाई जी  बाल - ब्रह्माचारी थे तथा असंख्य कुलीन व्यक्तियों के गुरु थे। जिनमें मेरे पूज्य पापाजी पण्डित नरेंद्र शर्मा, संगीतज्ञ श्री नीनू मज़ुमदार  जी, उदयपुर महाराणा श्री भवानी जी, जैसळमेर की कुंवारी बा, रेवा की राजकुमारी जी जैसे अनेक महानुभावों  की भक्ति आदरणीय मोटाभाई के श्री चरणों में फलीभूत हुई थी तथा श्री मोटाभाई ने स्वयं उद्घाटित किया था कि उन्होँने पावन नर्मदा मैया के तट पर अत्यंत प्रखर साधना की थी।
श्री मोटाभाई की पवित्र वाणी मेँ उनकी साधना से जुडे कुछ क्षणोँ के बारे मेँ सुनिये ~~" नर्मदा का पवित्र जल बडा मीठा हुआ करता था उन दिनोँ ! परँतु, " मीठा" मैँ उस जल को महज भक्ति या आदर से ही नहीँ कह रहा हूँ - ऐसा था कि उस समय मेँ, जब मैँने नर्मदा माई की गोद मेँ मेरी तपस्या शुरु की थी उस समय माँ नर्मदा के दोनों किनारों पर व आसपास बडा घना जँगल हुआ करता था ! विशाल, हरेभरे घटादार वृक्ष नदी तट के समीप वर्षों से विध्यमान थे उनमें से कुछ प्रमुख प्रजाति के वृक्ष थे जैसे जाम्बु  व आँवला इत्यादि ! यह अधिक  सँख्या मेँ नरमा माई के तट पर पाये जाते थे तथा इन हरेभरे वृक्षों पर मधु मख्कीयोँ के बृहदाकार छत्त्ते टँगे रहते थे जिन से रीस रीस कर कई सारा मधु, नर्मदा माई के शीतल जल मेँ बहुधा घुलमिल जाया करता था ! हम, मैँ व  मुझ जैसे अन्य तपस्वी भाई, प्रातः काल वेला में सूर्य उपासना करने जल मेँ पैठते थे व जल को मुँह मेँ ले कर पी लेते थे!  वह जल बडा ही शीतल व अत्यंत मधुर हुआ करता था। मधुमक्षिकाओं के विशाल छत्तों से रस झर झर कर ताजे मधु के मिश्रण से मिला नर्मदा मैया का वह मीठा शीतल जल, हमेँ अद्भुत  तृप्ति देता था ! सँजीवनी की तरह जीवन दान देता हुआ, शरीर को नई उर्जा देता था ! "
श्री मोटाभाई ९० वर्ष तक जीवित रहे थे । मुझे सौभाग्यवश उनका सानिन्ध्य उनके जीवन के पिछले वर्षोँ मेँ मिला चूँकि वे बम्बई शहर के, पूर्व विले पार्ला उप नगर मेँ अपने फ्लेट मेँ रहे। उन्हेँ नर्मदा नदी की याद, तब भी आती रही !वह मीठा -मधुर शीतल जल उन्हेँ बारबार याद आता रहा,बडे दु:खके साथ वे कहा करते थे कि," यदि  पर्यावरण के दूषण स्वरुप वे पुराने पेडोँ को काट दिया गया हो तब तो वे मधु मख्कीयोँ के छत्ते भी गए तब मेरी नर्मदा माई का जल पहले जैसा मीठा कैसे रहा होगा ? "
पूज्य मोटाभाई का यह कथन, यह सत्य, जो स्वयम पर प्रमाणित हुआ था, हमेँ आज के प्रदूषित समय में घोर आश्चर्य  मेँ डालता है। आधुनिक काल के भारतवर्ष  मेँ कई बडे बड़े विस्मयकारी परिवर्तन हुए हैं ...   हमारी मातृभूमि का स्वरुप काल के प्रवाह के साथ आज अभूतपूर्व रूप से बदल चुका है।  ठीक इसी तरह, नदियाँ और उनके बहाव व तटोँ में भी समयानुसार अभूतपूर्व परिवर्तन होते रहे हैँ। वर्तमान भारत मेँ, " नर्मदा बचाओ आँदोलन " ने पुनः एकबार "नर्मदा" नदी पर लोगोँ का ध्यान केँद्रीत कर दिया है। यदि हम महज भौगोलिक दृष्टि से सोचें तब हमें ध्यान पड़ता है कि मध्य भारत भूमि पर अवस्थित नर्मदा नदी का विशिष्ट स्थान है। उत्तर भारत की महत्वपूर्ण नदियाँ गँगा माई व यमुना जी के पश्चात, मध्य भारतीय माई नर्मदा, की गिनती ही सबसे पूजनीय नदी की तरह लोक मानस के साथ जुडी हुई  है। कहा जाता है कि, नर्मदा " कन्या - कुमारीका नदी " हैँ जबकि, गँगा मैया " सदा सुहागिन नदी " हैँ !
( लेखिका: लावण्या )

Thursday, April 12, 2007

प्रथम भारतीय मूल का चित्र


प्रथम भारतीय मूल के चित्र का विषय था एक राज पुरोहित का पुत्र!

ऐसी मान्यता है --
जिसकी अकाल मृत्यु हो गई थी.

शोक सँतप्त राज पुरोहित ने, अपने राजा से कहा कि
" कोई उपाय करेँ राजन्` कि जिससे मेरा यह मृत पुत्र फिर जीवित हो उठे !"
तब राजा ने सुझाव दीया कि, "सृष्टि के सर्जक ब्रह्माजी की पूजा करने से, उनकी तपस्या करने से शायद वे प्रसन्न होँ और मृत युवा को पुन: जीवन दान दे देँ "
तब ब्रह्माजी की तपस्या की गई - ब्रह्माजी ने प्रसन्न होकर आदेश किया कि, उस युवान की छवि बनाई जाये -- तब प्रथम चित्र का सृजन हुआ !

ब्रह्माजी ने अपने श्वास फूँके तो वह छवि/ चित्र , साँस लेते युवक मेँ परिवर्तित हो गया -

ये कथा, चित्रकला विषय पर , सबसे पुरानी लिखी गई पुस्तक, " चित्रलक्शणा" मेँ आती है


Saturday, April 07, 2007

महाभारत


ये मेरे पापाजी की यशस्वी " कवि यात्रा " का
अँतिम सोपान था आप सब को मेरे सादर स्नेह भेज रही हूँ
- विनीत्,

लावण्या

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Title: Episode 1

Artist: Raj Babbar, Asha Lata, Ram Mohan, Kiran Juneja, Prem Sagar, Abha Mishra, Rafique Mukadam, Rishabh Shukla

Producer: B.R ChopraDirector: Ravi Chopra

Music: Raj Kamal

Lyrics: Pandit Narendra Sharma






Thursday, April 05, 2007

तसव्वुर

आपकी याद
आती है,
जैसे हल्के से ..
मध्धम सी रोशनी मेँ
मेरी ज़िँदगानी ,
मुस्काती है -
और आपके रँगीन
तसव्वुर के
दीदार से
मेरी शामेँ ,
झिलमिलातीँ हैँ !
बादेसबा इठला के,
कोई धुन,
गुनगुनाती है ~~
और न जाने कैसे,
बेइन्तहा कलियाँ,
फूल बन के,
मुस्कुराती हैँ !
-- लावण्या

Wednesday, April 04, 2007

उडान


उडान

गीत बनकर गूँजते हैँ, भावोँ के उडते पाख!

कोमल किसलय, मधुकर गुँजन,सर्जन के हैँ साख!

मोहभरी, मधुगूँज उठ रही,कोयल कूक रही होगी-

प्यासी फिरती है, गाती रहती है,कब उसकी प्यास बुझेगी?

कब मक्का सी पीली धूप,हरी अँबियोँ से खेलेगी?

कब नीले जल मेँ तैरती मछलियाँ, अपना पथ भूलेँगीँ ?

क्या पानी मेँ भी पथ बनते होँगेँ ?होते होँगे,बँदनवार ?

क्या कोयल भी उडती होगी,निश्चिन्त गगन पथ निहार ?

मानव भी छोड धरातल, उपर उठना चाहता है -

तब ना होँगे नक्शे कोई, ना होँगे कोई और नियम !

कवि की कल्पना के पाँख उडु उडु की रट करते हैँ!

दूर जाने को प्राण, अकुलाये से रहते हैँ

हैँ बटोही, व्याघ्र, राह मेँ घेरके बैठे जो पथ -

ना चाहते वो किसी का भी भला न कभी !
याद कर नीले गगन को, भर ले श्वास उठ जा,

उडता जा, "मन -पँखी" अकुलाते तेरे प्राण!

भूल जा उस पेड को, जो था बसेरा तेरा, कल को,
भूल जा , उस चमनको जहाँ बसाया था तूने डेरा -

ना डर, ना याद कर, ना, नुकीले तीर को !

जो चढाया ब्याघने,खीँचे, धनुष के बीच!

सन्न्` से उड जा !छूटेगा तीर भी नुकीला -

गीत तेरा फैल जायेगा,धरा पर गूँजता,

तेरे ही गर्म रक्त के साथ, बह जायेगा !

एक अँतिम गीत ही बस तेरी याद होगी !

याद कर उस गीत को, उठेगी टीस मेरी !

"मन -पँछी "तेरे ह्रदय के भाव कोमल,

हैँ कोमल भावनाएँ, है याद तेरी, विरह तेरा,
आज भी, नीलाकाश मेँ, फैला हुआ अक्ष्क्षुण !

-- लावण्या