Thursday, April 26, 2007

लिखावट : कैसी हो ? ( Some unusual & Rare Documents )

~ वे हमेशा अपना लिखा हुआ ईश्वर के नाम के आरँभ के साथ आरँभ करतीँ हैँ
जी हाँ ,देखिये, पन्ने के ठीक बीचोँबीच लिखा है,
"श्रीकृष्ण" लिखावट : कैसी हो ?
मतलब इन्सान जबसे लिखना पढना शुरु करता है, अक्षरोँ से अपने मन की भावनाओँ को आकार देना शुरु करता है, तभी से लिखा हुआ एक एक अक्षर, 'दस्तावेज" की तरह सुरक्षित हो जाता है.
"ब्लोग - लेखन" भी हर इन्सान की सूझ बूझ, विचार शैली को लँबे अँतराल तक, समेटे, भविष्यमेँ कई सँभावनाएँ सँजोये, कुछ कहता हुआ, कुछ अपने लिये, कुछ किसी अन्य के लिये एक सत्य सा रखता हुआ, वैसा ही प्रामाणिक दस्तावेज बन पाये ये लिखनेवाले पर या तो 'सच्ची बातोँ " पर निर्भर होगा जो स्वयँ ही अपना आपा ढूँढेगा, बनायेगा या खो देगा !
यहाँ पर कई अलग तरह की लिखावट प्रस्तुत है ~
~हमारी सोच समझ जीवन के अनुभवोँ पर आधारित होती है, कई बार देख सुनकर वह ज्यादह परिपक्व होती है।
कुछ ऐसा भी लिख गए कि जिन्हेँ एक " माप - दण्ड " माना गया __ जैसे कि, कवि नाट्यकार रस शिरोमणि कालिदास या शेक्सपीयर !!
हिन्दी नाटिका " माधुरी" का प्रथम पृष्ठ देखिये __ आज "विश्वजाल" पर, "जाल घर" पर उपस्थित हो ही गया है ! ये पुस्तक मेरे पास है -- क्लीक करेँ और पढेँ --श्री भार्तेन्दु हरिस्चन्द्रजी की किताब का पहला पन्ना, हिन्दी साहित्य का प्रथम गौरवमय सोपान आज भी अपनी विजय पताका फेहराता, शान से
से खडा है !

हिन्दी नाटिका " माधुरी" का प्रथम पृष्ठ देखिये

और ये मेरे पुज्य पापाजी का देहली से लिखा हुआ पोस्ट कार्ड है -- जब वे आकाशवाणी को खडा करने मेँ सँलग्न थे -- आज भी "रानी बिटिया लावणी " का सम्बोधन पढकर, हल्की सी मुस्कान चेहरे पर छा ही जाती है ! अक्षर अवश्य धुँधले पड गये हैँ, स्याही भी सूख गई है कागज़ भी पुराना हो चला है पर उनकी भाव उमडवाने की क्षमता मेँ कोई कमी नहीँ आई !

और अँत मेँ यह चित्र मुझे भेजा गया था "ई मेल" के जरिये ~

~ कैलास पर्बत पर हिमपात का द्र्श्य कैमरे से लिया गया है !

गौर से देखिये, क्या जैसा आकार नहीँ दीखता ?? है ना विस्मय लिये बात ?

16 Comments:

Blogger अनूप भार्गव said...

लावण्या जी:
इन दुर्लभ पत्रों/चित्रों को हमारे साथ बाँटनें के लिये धन्यवाद ।
आप के पापा के हाथ की लिखावट उन के गीतों की ही तरह खूबसूरत है ।

3:58 PM  
Blogger Harshad Jangla said...

Lavanyaji

These are really rare documents, a treasure for you, a proud possession.

Thanx for sharing all these with us.
Rgds.

6:37 PM  
Blogger अभय तिवारी said...

सुबह सुबह अच्छे दर्शन कराये आपने..

7:30 PM  
Blogger लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

अनूप भाई,
नमस्ते !
ऐसे पत्र व चित्रोँ को हिन्दी सम्मेलन मेँ प्रेषित करना जरुरी समझती हूँ
( न्युयोर्क के हिन्दी उत्सव के लिये)
अगर, आप की रजामँदी भी हो तब और लोग भी इन्हे देख पायेँगे.
आपका क्या खयाल है ?
स -स्नेह,
लावण्या

8:57 PM  
Blogger लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

Harshad bhai,
Yes, such Treasures give pleasure by sharing & I have to do their "caring " & "preserving"
Isn't that the truth ?
The pleasure is mutual.
warm rgds,
L

8:59 PM  
Blogger लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

अभय जी,
नमस्ते!

आपका लिखा पढती रही हूँ --
आप बहोत अच्छा लिखते हैँ
बम्बई मेरा अपना शहर है जहाँ पलकर बडी हुई -

स -स्नेह,
लावण्या

9:01 PM  
Blogger काकेश said...

बहुत अच्छा लगा पुराने पत्र और पहाड़ी देख कर .जहां तक मुझे याद पड़ता ये पर्वत त्रिशूल पर्वत है जहां माना जाता है कि शिव निवास करते थे.

10:28 PM  
Blogger Nitin Bagla said...

आपके पापाजी का पोस्टकार्ड पढ कर मुझे अपने पापाजी द्वारा मुझे होस्टल भेजे गये कार्ड याद आ गये...हर ४-५ दिन में एक चिट्ठी आती थी..और कितना इन्तजार रहता था ... :)

10:34 PM  
Blogger लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

काकेशजी,
नमस्कार !
बम बम भोलेनाथ जी की पहाडी का नाम भी "त्रिशूल" ही होना चाहीये !
-स -स्नेह,
लावण्या

11:19 PM  
Blogger लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

नितीन भाई,
होस्टेल मेँ आपके पिताजी के पत्र !!
मानोँ घर से , "मस्त हवा का झोँका " ही आ गया हो क्योँ ? :)
मेरे पापा भी हम चारोँ भई बहनोँ को ( ३ बहने वासवी, लावण्या बाँधवी + १ भाई परितोष) को नियमसे ऐसे पोस्ट कार्ड लिखते थे --
-स -स्नेह,
लावण्या

11:24 PM  
Blogger ghughutibasuti said...

बहुत अच्छा लगा सब देख पढ़कर । पिताजी ! वह भी क्या समय होता है जब इस नाम का कोई व्यक्ति तुम्हें तुम्हारी हर समस्या से बाहर निकालने ले लिये हर समय उपलब्ध होता है !
घुघूती बासूती

4:53 AM  
Blogger Yunus Khan said...

लावण्‍या जी आकाशवाणी की विविध भारती सेवा में हूं । आपके पिताजी का नाम बताएं, तो पता चले कि किस मशहूर हस्‍ती की बेटी हैं आप । इस लेख के ज़रिए जिन दुर्लभ चित्रों और भावनाओं से आपने हमारा साक्षात्कार कराया है उसके लिये बहुत बहुत बहुत शुक्रिया । लता जी वाली चिट्ठी ने तो चकित ही कर दिया ।

7:34 AM  
Blogger Yunus Khan said...

केंद्रबिंदु नामक पोस्‍ट में आपकी अम्‍मां का नाम पढ़कर मुझे पता चला कि आप तो विविध भारती के जन‍क पंडित नरेंद्र शर्मा जी की बिटिया हैं । ओह । अद्भुत । कमाल हो गया । आपके पिता ने इस देश को विविध भारती दिया । ऐसा चैनल जो सूचना, मनोरंजन और शिक्षा का एक शिखर बन गया है । यही नहीं, इस साल विविध भारती अपनी पचासवीं सालगिरह मनाने जा रही है, अक्‍तूबर के महीने में । सोचिए जो पौधा आपके पिताजी ने लगाया था वो आज वृक्ष बन चुका है । अब आपसे एक निवेदन है, जिन दिनों में आपके पिता पंडित नरेंद्र शर्मा और उनके सहयोगी विविध भारती को बनाने और संवारने में जुटे थे क्‍या उन दिनों की कोई स्‍मृतियां हैं आपके मन में । अगर हां तो मेरा निवेदन है कि उन स्‍मृतियों को लिख डालिए । और हां क्‍या आपका भारत आना होता है, अगली बार कब आ रही हैं ।

7:47 AM  
Blogger लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

For YUNUS Bhai ---
October 01, 2006
a link for an interview of Sree Lata Mangeshkar ji

Please find a link for an interview of Sree Lata Mangeshkar ji ..

.http://sify.com/movies/fullstory.php?id=14301330

The direct link for the broadcast for playing in the media player


ishttp://icecast.commedia.org.uk:8000/history/lata.m3u

Please click the link and go on clicking the various links to finally load the m3u file which can be played in media player with internet connection.In this remarkable interview legendary singer Lata Mangeshkar nostalgically talks about her early life and how Pandit Narendra Sharma encouraged her in the days of struggle. It was a special relationship. Lata called the great Hindi poet as Papa as she saw hin him the image of her father. In this very informal interview with Pt Narendra Sharma's daughter Lavanya Shah

Lata opens her heart. The interview was first broadcast at Radio Cincinnati's Indian programme "Swaranjali."

12:49 PM  
Blogger लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

घुघूती जी:
सही कह रहीँ हैँ और पापाजी प्रकाण्ड पँडित, ज्योतिषाचार्य, वेदपाठी, चिर तरुण युवा मस्तिष्क से निष्पक्ष सर्व मँगलकारी सोच व दीर्घ दृष्टि रखनेवाले स्वजन थे -- जितना कहूँ उतना ही कम होगा ! उपर से मेरे "पापा " तो थे ही ! और क्या लिखूँ ? :)
आप के स्नेह के प्रति आभारी हूँ ~
-स -स्नेह,
--- लावण्या

12:54 PM  
Blogger Divine India said...

मैडम,
मैं क्या कहुँ यह अव्यक्त ही हो तो ज्यादा अच्छा है…
चूंकि मैं इस क्षेत्र से जुड़ गया हूँ तो आदरणीय नरेंद्र शर्मा सर के संदर्भ में पढ़ने और जानने को काफी मिलता है…और यह मेरा अपना सौभाग्य की आपसे
संपर्क हो पाया…।

1:38 AM  

Post a Comment

<< Home