Saturday, May 26, 2007

श्री अमृतलाल नागर - संस्मरण - भाग -- ५

तीनोँ पुत्रियाँ सौभाग्यवती वासवी, ( .मौलिक व शौनक) सौ. लावण्या, (सिँदुर व सोपान ) सौ.मोँघी ( बाँधवी ) (कुँजम व दीपम ) ,परितोष , अम्मा और पापा जी के साथ १९ वेँ रास्ते खार, बँबई के घर के आँगन मेँ...
गोदीवाला परिवार-
[ मेरी नानी जी कपिला गोदीवाला की गोद मेँ हूँ ]- श्रीमती सुशीला नरेन्द्र शर्मा
श्री गुलाबदास गोदीवाला जी तथा उनकी माता जी "मोटा बा" [मेरी पडनानी जी ]जो १०३ वर्ष की थीँ जब भरे पूरे परिवार के सामने चल बसीं ]
गताँक से आगे : ~~ 
मैँ उस समय भारत कोकिला श्रीमती सुब्बुलक्ष्मी जी की एक फिल्म 
" मीरा " हिन्दी मेँ डब कर रहा था और इस निमित्त से वह और उनके पति श्रीमान्` सदाशिवम्`जी बँबई ही रह हरे थे। बँधुवर नरेन्द्रजी ने उक्त फिल्म के कुछ तमिल गीतोँ को हिन्दी मे इस तरह रुपान्तरित कर दिया कि वे मेरी डबिँग मेँ जुड सकेँ। सदाशिवं`जी और उनकी स्वनामधन्य पत्नी तथा तथा बेटी राधा हम लोगोँ के साथ व्यावसायिक नहीँ किन्तु पारिवारिक प्रेम व्यवहार करने लगे थे. 
सदाशिवं`जी ने बँबई मेँ ही एक नयी शेवरलेट गाडी खरीदी थी. वह जोश मेँ आकर बोले, " इस गाडी मेँ पहले हमारा यह वर ही यात्रा करेगा ! "
गाडी फूलोँ से खूब सजाई गई उसमेँ वर के साथ माननीय सुब्बुलक्ष्मी जी व प्रतिभा बैठीँ । समधी का कार्य श्रधेय सुमित्रनँदन पँत ने किया। बडी शानदार बारात थी ! बँबई के सभी नामचीन्ह फिल्मस्टार और नृत्य - सम्राट उदयशँकर जी उस वर यात्रा मेँ सम्मिलित हुए थे. बडी धूमधाम से विवाह हुआ. मेरी माता बंधु से बहुत प्रसन्न् थी और पँत जी को , जो उन दिनोँ बँबई मेँ ही नरेन्द्र जी के साथ रहा करते थे, वह देवता के समान पूज्य मानती थी । मुझसे बोली, " नरेन्द्र और बहु का स्वागत हमारे घर पर होगा ! "
वह स्वागत समारोह भी अनोखा ही था. पँतजी ने अपनी एक कविता सुनायी तथा माननीया सुब्बुलक्ष्मी जी ने माँगलिक गीत गाये. वह दिन आज भी याद आ रहा है तो मेरी आँखेँ वे स्मृतियाँ लिखते हुए बरस रहीँ हैँ ! सपना हो गये वे दिन !
आज बँधु के स्वर्गवास के दसवेँ दिन यह सँस्मरण लिख रहा हूँ - इस दस दिनोँ मेँ मैँने उन्हेँ न जाने कितना याद किया है ! प्रतिभा की मृत्यु के बाद मैँ इतना कभी नहीँ रोया. बँधुवर नरेन्द्र जी अजातशत्रु थे ! अपने मीठे व्यवहार से उन्होँने सारी बँबई को एक प्रकार से बाँध लिया था. अवधी के ख्यातिनामा कवि स्व. बालभद्र दीक्षित " पढीस" की स्मृति मेँ हम दोनोँ के परम मित्र डो. रामविलास जी शर्मा के सँपादक्त्व मेँ लखनुउ से प्रकाशित मासिक पत्रीका " माधुरी" का एक विशेषांक प्रकाशित हुआ था। बँधुवरने , जो उन दिनोँ प्रगतिशील आँदोलन से जुडे हुए थे , किसी की स्मृति मेँ एक कविता लिखी थी, जिसकी एक पँक्ति अब भी मुझे याद है , " एक हमारा साथी था जो चला गया " --आज वही पँक्ति अपने परम प्रिय कवि नरेन्द्र शर्मा के लिये दोहरा कर प्रभु से यह कामना कर रहा हूँ कि अगले जन्म मेँ भी हमारा और उनका साथ हो ! नरेन्द्र जी की तीनोँ पुत्रियाँ सौभाग्यवती वासवी, सौ. लावण्या, सौ.मोँघी ( बाँधवी ) तीनोँ ही सम्पन्न और सुसँस्कृत परिवारोँ मेँ ब्याही हैँ बाल -बच्चोँवालीँ हैँ अब चि. परितोष अपनी माँ की सेवा करने के लिये अकेला है. राम करे, वह चिरँजीवी, चिरसुखी तथा चिर उन्नतिशील हो तथा अपनी माँ , मेरी प्रिय सुशीला बेन को खुब खुब सुख दे! "
-- अमृत लाल नागर

~~~~ *समाप्त *~~~~~

44 Comments:

Blogger Udan Tashtari said...

बढ़िया लग रहा है यह संस्मरण. चित्र देखकर भी आनन्द आया.

9:22 AM  
Blogger लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

धन्यवाद समीर भाई !
आपका आगमन उडन तश्तरी से
आकर और न जाने कितने लोकोँ
की सैर को निकल पडता है ! :-)
स्नेह
लावण्या

3:47 PM  
Blogger Dr.Bhawna Kunwar said...

पूरा ही संस्मरण बहुत अच्छा रहा। सभी अवस्थाओं की, फोटो और लेखन के माध्यम से आपने अच्छी जानकारी दी। बधाई।

11:11 PM  
Blogger लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

भावना जी.
मेरे अमृत लाल चाचा जी का लिखा आप सब के साथ बाँट कर खुशी हुई है मुझे १
आभार व स्नेह सहित,
लावण्या

12:41 PM  
Blogger Divine India said...

आदरणीय मैडम,
इस समय अपने प्रोजेक्ट में अत्यंत व्यस्त था इसकारण आ नही पा रहा था… यह संस्मरण सभी तहों को खोल कर यह दिखा रहा है कैसे उस जमाने में भी लोग ने क्या-2 किया…।

9:59 AM  
Blogger लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

हाँ दीव्याभ ,
हम अक्सर अनजान बने रहते हैँ कि हम, या हर पीढी आगे चली गये हमारे पुरखोँ के कँधोँ पे खडे होकर ही
आने वाले क को देखते हैँ पर कभी कभार, हम नीँव की ओर देखना भूल जाते हैँ. मैँ हमेशा भविष्य व भूतकाल
के बीच आज को एक कडी मानती हूँ -- एक अटूट श्रँखला मेँ बँधे हुए ,हम सब !
टिप्पणी के लिये शुक्रिया
स स्नेह
-- लावण्या

5:06 PM  
Blogger Sanjeet Tripathi said...

आपके संस्मरण हमें भी उस समय को जीने का मौका देते हैं।
आभार्।
और हां सृजनगाथा में आपका आलेख अच्छा है!
शुभकामनाएं

1:58 AM  
Blogger लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

सँजीत जी,
धन्यवाद !
आपको सृजन गाथा पर मेरा लेख पसँद आया -
आपके साथ बीते हुए कल के परिवार के स्वजनोँ की स्मृतियाँ बाँट पायी ये विज्ञान के विकास के एक सुलभ साधन
का सद-उपयोग ही तो है !
स्नेह

लावण्या

11:50 AM  
Blogger Unknown said...

दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें।

8:50 PM  
Blogger Manish Kumar said...

चित्रों का बढ़िया संकलन अतीत की यादों में खींच ले गया! धन्यवाद।

11:20 AM  
Blogger रजनी भार्गव said...

लावण्या दी बहुत अच्छा संस्मरण है,हमेशा की तरह.आपसे सुन कर तो और भी अच्छा लगता है.नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ.

11:40 AM  
Blogger विनीत उत्पल said...

संस्मरण बहुत अच्छा लगा.नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं

6:17 AM  
Blogger Batangad said...

कमाल के संस्मरण हैं आपके पास। और, संस्मरण अमृत लाल नागरजी से जुड़ा है तो क्या बात।

4:36 PM  
Blogger आशीष कुमार 'अंशु' said...

अच्छा संस्मरण है

4:32 AM  
Blogger Dr. Chandra Kumar Jain said...

लावण्या बहन,
आपके पास विरासत,अनुभव,अनुभूति की
जो विभूति है उसकी संस्मरणात्मक प्रस्तुति
हम सबके लिए एक अनूठा उपहार ही है.
============================
प्रस्तुत श्रृंखला के चित्र और शब्द-चित्र
दोनों आपके अवदान के हस्ताक्षर हैं.
============================
आपका आभार.
डा.चंद्रकुमार जैन

2:37 AM  
Blogger pallavi trivedi said...

bahut achcha laga aapka ye sansmaran padhkar...ek alag anubhooti hui! chitron ko dekhkar aanad aaya...thanx

11:23 AM  
Blogger महावीर said...

श्री अमृतलाल नागर - संस्मरण के पांचों भाग इतने रोचक हैं कि एक ही बैठक में पढ़ डाले।
पं. नरेन्द्र शर्मा जी 'प्यासा निर्झर' में उनकी काव्य-रचनाओं की भूमिका पढ़ कर तो मैं आनन्दविभोर हो गयाः "कविता अविभक्त अद्वैत और
परिपूर्ण का प्रसाद है.....", ऐसा लगने लगा जैसे सारा दर्शन इस में समा गए हों।
सिने-जगत के आधार स्तंभ जैसे दिग्गज लोगों के बारे में पढ़ कर जैसे अतीत में पहुंच गए हों। भगवती बाबू , जुन्नरकर, किशोर साहू, लीला चिटनिस, देविका रानी की 'तन्दरुस्ती', बस यह कहिए कि हर नाम पढ़ते जैसे पुराने टाइम ज़ोन में पहुंच गए हों।
केवल रोचक या आनन्द की दृष्टि से ही नहीं, बहुत ही ज्ञान वर्धक संस्मरण हैं। सारे चित्र
collector's items हैं,
और लता जी के कर-कमलों द्वारा खींचे हुए पंडित जी और तुम्हारे विभिन्न मुद्राओं के फोटो तो देखने वाले हैं।
बड़े परिश्रम से यह सब संजो कर पढ़ने का अवसर देने के लिए धन्यवाद और बधाई।
महावीर

3:21 PM  
Blogger admin said...

बहुत ही रोचक श्रंख्ला है। इसे आगे भी जारी रखें।

2:04 AM  
Blogger समयचक्र said...

संस्मरण बहुत अच्छा लग रहा है . बधाई..

6:56 AM  
Blogger बवाल said...

Ye sansmaran, amar hain jee. Sundar prastuti thee. Sil ko chhoo gayee.

11:11 AM  
Blogger ताऊ रामपुरिया said...

आजादी के इस उल्लासमय पर्व पर आपको हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
आज पहली बार आपके ब्लॉग को पढ़ने का सौभाग्य मिला ! पोस्ट बहुत पुरानी हैं पर ये तो कालजयी हस्ताक्षर हैं ! हमेशा नूतन और अमर रहेंगे !
बस गद गद और अभिभूत हूँ ! आज से पहले मालूम नही था , ये मेरा दुर्भाग्य था ! बहुत बहुत प्रणाम आपको !

11:37 PM  
Blogger شہروز said...

naagar ji mere aadarsh rahe hain.
unhain jitna padho, unke bare mein jitna jaan lo trishna mitti nahin.
aaplog shresht kar rahe hain.

6:04 AM  
Blogger रश्मि प्रभा... said...

main to abhibhut ho gayi yahaan aakar, awismarniye

9:09 AM  
Blogger Asha Joglekar said...

lavanyam ji aapke blog par aakar achcha laga. snsmaran achche lage

6:53 AM  
Blogger shelley said...

chitron k liye dhanwad. bahut achchha laga

1:49 AM  
Blogger shelley said...

pura blog dekha maine, sare post v bahut hi pyara blog hai aapka, bahut pyara........
aapke paas yadi krishna nagar ka chitr ho to use v uplabdha karaiywga

1:56 AM  
Blogger Kavita Vachaknavee said...

संजोने में आप खूब निपुण हैं।
अच्छा पितृऋण चुका रही हैं।
बहुत अच्छा लगा।
अनेक शुभकामनाएँ।

11:31 AM  
Blogger sandeep sharma said...

दीपावली की हार्दिक मंगलकामनाएं...

7:06 AM  
Blogger समीर सृज़न said...

achha laga..bhawnao ko aapne jis tarah net ke panno par ukera hai ..wakai ye kabiletarif hain...likhte rahiye...

3:24 AM  
Blogger Science Bloggers Association said...

कृपया इस ब्‍लॉग पर भी कुछ नया लिखें, पाठकों को प्रतीक्षा रहती है।

10:04 PM  
Blogger अविनाश said...

आपके और आपके पुरे परिवार को होली की बधाई और शुभकामनायें.

धन्यवाद

2:59 AM  
Blogger डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

This comment has been removed by the author.

4:09 AM  
Blogger डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहिन लावण्या जी।
महान साहित्यकार श्रद्धेय नागर जी के पाँचों संस्मरण आद्योपान्त पढे। अच्छे लगे।
किसी अन्य साहित्यकार के भी संस्मरण
हों तो प्रकाशित करें।
बधाई।

4:12 AM  
Blogger Divya Narmada said...

जीवंत-प्रेरणादायी संस्मरण...अद्भुत संसार..कभी बुआजी (पूज्य महादेवी जी) के सम्बन्ध में भी लिखिए. क्या आपके ब्लॉग से कुछ सामग्री 'दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम' में दे सकता हूँ? आपकी सहमती होगी तो धारावाहिक देना चाहूँगा.

1:10 AM  
Blogger लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

इस ब्लोग पर बाद मेँ
कई नई टीप्पणियाँ आयीँ हैँ
आप सारे गुणीजनोँ ने
पूज्य नागरजी चाचा जी की याद करते हुए अपने अपने श्रध्धा सुमन चढाये हैँ
उन्हेँ विनम्रतापूर्वक सर आँखोँ पर स्वीकारती हूँ -
कुछ नया आजकल
"लावण्यम्` - अन्तरमन " ब्लोग पर लिख रही हूँ -
वहाँ भी आकर पढीयेगा -
आभारी हूँ
आचार्य जी आप अवश्य जो भी सामग्री 'दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम' के लिये लेना चाहेँ अवश्य ले लीजियेगा -
सादर, सविनय,
--- लावण्या

7:42 PM  
Blogger सर्वत एम० said...

अपने महान परिवार की saahityiak विरासत को आप आगे बढाइये
achchhaa lga , shubhkaamnaayen

6:46 AM  
Blogger सर्वत एम० said...

अपने महान परिवार की saahityiak विरासत को आप आगे बढाइये
achchhaa lga , shubhkaamnaayen

6:47 AM  
Blogger L.Goswami said...

खुसी हुई चित्र देख कर ..और संस्मरण पढ़कर भी.

10:30 PM  
Blogger Randhir Singh Suman said...

nice

6:35 PM  
Blogger raviraj said...

Hello Lavanyajee
By going through you Blog, one amezed as to how well-informed you are. May I know ur Sun Sign..

I want to write a comprehansive write up on Pt Jee. Thus I just need to be in touch with you. I need one write up from you too remembering Papa.. Pls revert me on my email
raviraj1007@gmail.com

Best Regards
Raviraj

1:36 AM  
Blogger Pushpendra Singh "Pushp" said...

सुन्दर संस्मरण
आभार

4:20 AM  
Blogger shama said...

Yah malika padhte samay,har baar aankhen nam ho jatee hain!

5:48 AM  
Blogger Asha Joglekar said...

आपका ब्लॉग पढते समय एक से एक नाम किये व्यक्तियों के साथ ऐसा परिचय होता है जैसे वे बहुत अपने हों ।अमृत लाल नागर जी के सुंदर संस्मरण पढवाने का आभार ।

12:31 PM  
Blogger kshetrapal Sharma said...

खंजन लेख. गजब


अति आनंद भयौ


सादर

7:21 PM  

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